जिस प्रकार हमारा शरीर पांच तत्वों से बना है,उसी प्रकार वास्तु में भी पांच तत्व का महत्व है ।
यह पांच तत्व है ,भूमि ,जल ,अग्नि ,आकाश ,वायु।
श्लोक है छित्ति जल पावक गगन समीरा ,पंचतत्व ते बना शरीरा ।
इन पांच तत्वों का संतुलन आवश्यक है ।
यदि पृथ्वी के स्थान पर जल तत्व किए गए हो तो ,प्रकृति के विपरीत कार्य माने जाएंगे । फलता प्रकृति के दुष्परिणाम भी भुगतने पड़ेंगे ,जल तत्व के स्थान पर पृथ्वी तत्व नहीं होने चाहिए ।
आइए जानते हैं कि किस तत्व की स्थिति कहां होती है सबसे पहले भूमि की सही दिशा की परीक्षा कंपास द्वारा कर लेना चाहिए ।
चार दिशाएं होती है चार कौन होते हैं आकाश और पाताल इन सभी दिशाओं को मिलाकर इस प्रकार कुल 10 दिशाएं होती है ।
प्रथम दिशा पूरब दिशा होती है ,जिसके ग्रह सूर्य होते हैं एवं अधिपति देवता इंद्र होते हैं ,दूसरी दिशा अग्नि कोण होते हैं जो पूर्व और दक्षिण के कोण को कहते हैं ,इस दिशा का ग्रह शुक्र है और अधिपति देवता अग्निदेव होते हैं ,तीसरी दिशा दक्षिण होता है जिसका स्वामी ग्रह मंगल होते हैं और देवता यमराज होते हैं ,चतुर्थ दिशा नैऋत्य कोण होते हैं, जो दक्षिण और पश्चिम के कोण को कहते हैं ।इसके ग्रह राहु होते हैं और प्रधान देवता निऋिति नामक राक्षसी होती है ।
पांचवा दिशा पश्चिम दिशा होता है जिसका स्वामी ग्रह शनि देव हैं देवता वरुण देव होते हैं ,छठा दिशा पश्चिम उत्तर कोण जिसे वायव्य कोण कहा जाता है ,इस के स्वामी ग्रह चंद्रमा और देवता वायु देवता होते हैं ।
सातवा दिशा उत्तर दिशा होता है जिसका स्वामी ग्रह बुध होता है और देवता कुबेर होते हैं ,आठवां दिशा उत्तर-पूर्व कोण होते हैं जिसे ईशान कोण कहा जाता है स्वामी ग्रह बृहस्पति और भगवान शिव देवता होते हैं ।
नौवा दिशा आकाश होता है ,जिसके ग्रह बृहस्पति और स्वामी देवता ब्रह्मा होते हैं ,घरों में आकाश तत्व को ब्रह्म स्थल कहते हैं । दसवां दिशा पाताल होता है,जिसके स्वामी देवता अनंत होते है।पृथ्वी तत्व में नैऋ्त्य कोण में ,यहां रसोईघर नहीं होना चाहिए ,भूमिगत टंकी या सेप्टिक टैंक नहीं होना चाहिए।
बोरिंग या जल का कोई भी स्रोत यहां नहीं होना चाहिए क्या भूमि जितनी सुखी रहेगी उतना ही अच्छा होगा ,पूरे भूखंड में यही दिशा सबसे ऊंचा होना चाहिए भूमि काढाल उत्तर पूरब की ओर होनी चाहिए ,भवन निर्माण में सदैव यह ध्यान रखना चाहिए कि यह कौन सर्वाधिक ऊंचा और वजनदार हो ,सिढ़ियों का वजन सबसे अधिक होता है यहां होना उत्तम है ,इससे गृह स्वामी दीर्घायु और उनकी स्थिरता बनी रहती है ,परंतु यदि इस्कॉन में भूमिगत जल हो तो घर में गिरी स्वामी अल्पायु हो जाते हैं ,टाइम सरिया हार्ट अटैक से मृत्यु हो जाती है।
छत की ढाल इस और हो तो या यहां से नाली निकल रहा हो तो मकान निलाम हो जाता है ,कर्ज का भार इतना बढ़ जाता है कि चुकाना मुश्किल हो जाता है अंत में मकान बिक जाता है ,मुकदमा तो हो ही जाते हैं कई घरों में प्रेत की आहट अथवा आश्चर्यजनक घटनाएं घटती रहती है स्वयं ही दरवाजा या खिड़की बंद या खुलने लग जाते हैं आवाजें आने लगती है ,घर में रहने वाले लोगों की बीपी की बीमारी लकवा की बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है कोई बड़ा शत्रु परेशान करने लगता है सदैव शत्रु पक्ष की विजय होती है चारों ओर से दुखद और शोक पूर्ण वातावरण का अनुभव देखा गया है ।
क्या उपाय करें :-
भूमि की ढाल उत्तर या पूर्व की ओर करें
भूमिगत जल, टंकी, बोरिंग, नाली, हटा दें ।उत्तर पूरब की ओर जल की व्यवस्था करें इन सभी चीजों का उत्तर पूर्व में व्यवस्था करें ।
चूंकि नैऋ्त्य का स्वामी देवता नृत्य नामक राक्षसी और ग्रह में राहु का आधिपत्य है यहां ऊंचा होना अच्छा माना जाता है
कुछ घरों में दक्षिण के दरवाजे होते हैं और प्रवेश के बाद खाली स्थान और खुला छोड़ देते हैं ऐसे घरों में यह दोष बन जाता है अथवा बाहर से septic tank बना देते हैं, इसके कारण घर मेंआसुरी स्वभाव बढ़ जाता है लोग क्रोधी, जिद्दी ,अभिमानी हो जाते हैं घर में कलह होने लगता है, अंततः गृहस्वामी की मौत फांसी लगाकर या जहर खाकर हो जाती है,कई बार ऐसा देखा गया है कि रहस्यमई मिलती होते हैं सोए और सोए रह गए।
यदि दक्षिण और पश्चिम का कोना बढ़ गया हो तो इसे नैऋत्य वृद्धि भूखंड कहते हैं ऐसे स्थान पर भूत प्रेत का उपद्रव बढ़ेगा घरवाले दरिद्रता और कला से परेशान रहेंगे अकाल मृत्यु हो जाती है।
यदि यह कोण कट गया हो तो इसे नैऋत्य कट भूखंड कहते हैं ।आयु का आकलन इसी दिशा से होता है यह छोटा पड़ गया हो तो आयु कम हो जाती है पूर्णायु नहीं जी पाते ।